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NEET PG INSTITUTIONAL PREFERENCE
आपका ध्यान किधर है, इंस्टिट्यूशनल प्रेफरेंस इधर है –
Institutional preference –
इसका मतलब है कि जिस छात्र ने जहां से पढ़ाई की है उसे उसके इंस्टिट्यूट में आगे की पढ़ाई में वरीयता मिले ।
पिछले साल 2016-17 में गुजरात हाईकोर्ट में यह केस चला था और वहां फैसला आया था कि यह सही चीज है और दिया जाए ।
पिछली राजस्थान में भी यही मुद्दा उठा था, कोर्ट में भी मामला गया पर कोई ठोस रिजल्ट नहीं आया ।
महात्मा गांधी वाले ने मौके का फायदा उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में केस किया, जहां इनका वकील कपिल सिब्बल था और इन्होंने यह गुपचुप फैसला करवा लिया कि इंस्टिट्यूशनल प्रेफरेंस जायज है ।
इसका असली खुलासा स्टेट कॉउंसलिंग के दौर में हुआ जब इन सर्विस महिला कैंडिडेट डॉ. सैनी को महात्मा गांधी की स्टेट कोटे की रेडियोडायग्नोसिस की सीट लेने से रोक दिया गया, कहा गया कि यह सीट इंस्टिट्यूशनल प्रेफरेंस कोटे में है चूंकि 25% सीटें महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी के छात्रों के लिए रिजर्व्ड हैं तो यह सीट हमने उस कोटे में डाल दी है ।
चूंकि यह उनकी दादागिरी थी कि उन्होंने रेडियोडायग्नोसिस की सीट ही इस कोटे में डाली और फिर गायनी-ऑब्स की सीट भी डाली गई ।
डॉ. सैनी के समर्थन में डॉ. जितेन्द्र बगड़िया द्वारा जबरदस्त विरोध करवाया गया और बात कॉउंसलिंग कमेटी से भिड़ंत तक गयी थी, प्रक्रिया रुकवाई गयी और पूरा स्पष्टीकरण लिया गया, पिछले साल के सभी साथी इसके गवाह हैं ।
यह हमेशा से इनकी दादागिरी रही है कि ये कई सीटों पर घपला करते हैं लेकिन पिछले साल कॉउंसलिंग हॉल में हजारों इन सर्विस मजबूत साथियों की बदौलत यह आंकड़ा एक-दो सीटों तक अटक गया ।
इंस्टिट्यूशनल प्रेफरेंस का सादा अर्थ यह है कि उक्त यूनिवर्सिटी की कुल स्टेट कोटे की सीटों में 25 फीसदी लोग उस यूनिवर्सिटी के आने ही चाहिए ।
अगर सभी एलिजिबल कैंडिडेट कॉउंसलिंग प्रक्रिया से गुजर गए तो मोप अप के बाद यह सीट ओपन हो जाएगी, लेकिन उस से पहले के सभी राउंड में यह गेंद उनके पाले में ही रहेगी ।
* पिछली साल केवल एक बैच ऐसा था जो महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी से पास आउट था जो कि इस कोटे के लिए एलिजिबल था, इस साल दो बैच हो जाएंगे ।
इस से पहले के सभी महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज के छात्र RUHS में आते थे ।
इस बैच वालों को वो सीटें देने का गेम खेला गया था ।
इन सर्विस और इंस्टिट्यूशनल प्रेफरेंस =
यह प्रेफरेंस है ना कि रिजर्वेशन ।
उदाहरण –
स्टेट कोटे में करीब 500 सीट हैं, इनमें से 25% RUHS के छात्र आने चाहिए, यानी 125 छात्र ।
इस नियम के अनुसार 125 छात्र स्टेट कोटे में RUHS के होने ही चाहिए ।
लेकिन हालात यह हैं कि 125 के बजाय 325 RUHS वाले उपलब्ध हैं अतः यह नियम स्वतः ही पूर्ण हो गया ।
यानी दिक्कत तब आएगी जब RUHS के 125 लोग नहीं मिलेंगे, उस साल ये लोग पहले 125 RUHS वालों का इंतज़ार करेंगे फिर भी पूरी कॉउंसलिंग में 25% यानी 125 लोग नहीं आये तो इनको ओपन करके सबको लेंगे ।
यह दिन अगले कई बरसों तक तो आणा नहीं है, बाकी आपके पोतों की वो जाणें 😉
अभी मौज लो ।
32 Clinical seats increased in Rajasthan Medical Colleges
08 March 2018
मेडिकल कॉलेजों में पीजी (क्लीनिकल) विषयों में 32 सीटों की बढो़तरी की है। बढ़ी हुई सीटों में सत्र 2018-19 से ही प्रवेश देना होगा। एसएमएस मेडिकल कॉलेज में एमएस (ईएनटी) में अब 7 की बजाय 12, एसपी मेडिकल कॉलेज बीकानेर में एमएस (ऑफ्थेल्मोलोजी) में 6 की बजाय 8, आरएनटी मेडिकल कॉलेज उदयपुर में एमएस (ऑफ्थेल्मोलोजी) में 3 की बजाय 4 को प्रवेश दिया जा सकेगा। जानिए और इस बारे में …
– स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्य सरकार को मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया, नई दिल्ली के नियमानसार निर्धारित मापदंड़ों में इन्फ्रास्ट्रक्चर, मेनपावर व उपकरणों की कमी पूर्ति करने के निर्देश दिए हैं। सरकारी कॉलेज कोटा में गायनी की सबसे ज्यादा 11 सीटें बढ़ी हैं।
यहां भी सीटें बढ़ी
सरकारी कॉलेज कोटा
– एमएस एनेस्थेशियालोजी में 11 की बजाय 16
-एमएस (गायनी) में 4 की बजाय 15
-एमएस (ऑफ्थेल्मोलोजी) में 3 की बजाय 4
जेएलएन मेडिकल कॉलेज अजमेर
-एमएस (एनेस्थेशियालोजी) में 14 की बजाय 16
-एमडी (डर्मेटोलोजी) में 3 की बजाय 4
-एमडी (मेडिसन) में 14 की बजाय 18
Read more at Medical Dialogues: One Time Increase in PG Seats: 612 MD, MS seats to be added https://medicaldialogues.in/one-time-increase-in-pg-seats-612-md-ms-seats-to-be-added/
All Rajasthan In Service Doctors Association
सरकारी चिकित्सक क्या है ?
राजस्थान प्रदेश में कार्यरत प्रत्येक वो चिकित्सक जो कि चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत है वो सरकारी चिकित्सक है ।
मेडिकल कॉलेज के चिकित्सकों का अलग कैडर है, अलग नियम हैं और अलग भर्ती होती है, दोनों विभागों में समान डिग्री और अनुभव आदि होंने पर भी मेडिकल एजुकेशन वालों के पे ग्रेड, सेलरी, प्रमोशन व अन्य सुविधाएं सरकारी चिकित्सक के बजाय काफी बढ़िया हैं, जो कि निश्चित रूप से सरकार का दोगलापन है ।
अरिसदा क्या है ?
फ्री दवा जांच योजना से पहले सरकारी डॉक्टर जीवन यापन सही से कर रहे थे और एक दूसरे की आवश्यकता नही थी, आजकल सब फ्री हो जाने के बाद डॉक्टर सैलरीड एम्प्लॉयी हो गए हैं और इसीलिए तनख्वाह, भत्ते, प्रमोशन की तरफ आस लगाए हुए हैं, इसी आस का आधार बना है “अरिसदा” । 2011 में एक इतिहास इस संघ के बैनर तले लिखा गया लेकिन आपसी खींचतान और कुछ अन्य कारणों से इसके बाद इस संघ में केवल बिखराव ही आया है ।
अरिसदा सेवारत चिकित्सकों का अलोकतांत्रिक संघ है जिसमें निर्वाचन के बजाय मनोनयन की परंपरा ज्यादा है जिसमें जिलों में अधिकारियों को मुख्य पद दिए जाते हैं और राज्य स्तर पर जयपुर वालों पर जबरदस्ती कई पद थोपे जाते हैं और यही इस संघ की कमजोरी का सबसे बड़ा कारण है ।
अरिसदा मजबूत कैसे हो ?
इसे मनोनयन की संस्था से लोकतांत्रिक संस्था बनाया जाए ताकि दूरस्थ phc पर कार्यरत चिकित्सक को भी राज्य कमेटी में अपनी भूमिका लगे ।
आज के दिन मुख्य मांगे क्या हैं?
1. चिकित्सा विभाग में सेवारत चिकित्सकों का कैडर (भारत सरकार/हरियाणा के अनुरूप) बनाया जाए ।
2. एक पारी में अस्पतालों का संचालन ।
3. केंद्र के समान वेतनमान, भत्ते और पदोन्नति मिलें, पूर्व में डीएसीपी में रही विसंगतियों को दूर किया जावे ।
प्रमोशन में वन टाइम रिलेक्सेशन मेडिकल एजुकेशन विभाग की भांति दिया जावे ।
4. पीजी प्रवेश परीक्षा हेतु पूर्व में डिफाइन (2017 में डिफाइन किये गए रिमोट/डिफिकल्ट) किये गए ग्रामीण क्षेत्र (रिमोट/डिफिकल्ट), जिसमें ग्रामीण भत्ता मिलता है को यथावत रखा जाए ।
5. ग्रामीण भत्ता मूल वेतन पर 50 प्रतिशत दिया जावे ।
6. ट्रांसफर पालिसी बनाई जावे, चिकित्सा अधिकारियों को नियम 22A के तहत प्रारम्भ में ग्रामीण क्षेत्र में लगाया जाए फिर शहरी क्षेत्र में शिफ्ट किया जावे एवं ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत चिकित्सकों के रहने हेतु नजदीकी शहरों में क्वार्टर उपलब्ध करवाए जावें, इमेरजेंसी ड्यूटी हेतु ट्रांसपोर्ट की सुविधा अन्य राजपत्रित अधिकारियों की भांति उपलब्ध करवाई जावे ।
7. चिकित्सकों की वार्षिक प्रगति प्रतिवेदन (ACR) के रिव्यू अधिकार पंचायती राज के अधिकारियों से हटाकर पूर्व की भांति CMHO/JD/DMHS को दिए जावें । (कैडर बनते ही यह मांग खत्म)
8. कई जगह सीएमएचओ जिला परिषद कार्यालयों आदि अन्य जगहों पर बैठते हैं, इनके लिए अलग से ऑफिस बनाये जावें । (कैडर बनते ही यह मांग खत्म)
9. चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग में नई पॉलिसी/योजना/बजट घोषणा करने से पहले इसकी विस्तृत चर्चा सेवारत चिकित्सक संघ से की जाए ताकि इनकी प्रभावी क्रियान्विति हो ।
10. चिकित्सालयों में बनी सोसायटी RMRS के अध्यक्ष चिकित्सा विभाग के अधिकारियों को बनाया जावे । (कैडर बनते ही यह मांग खत्म)
11. सभी चिकित्सालयों में IPHS norms के अनुसार जनता को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाई जावे ।
12. सभी चिकित्सकों को समय समय पर ट्रेनिंग/कॉन्फ्रेंस, प्रत्येक वर्ष में कम से कम 3 बार राज्य सरकार के व्यय पर करवाई जावे ।
13. नए जोइनिंग करने वाले चिकित्सा अधिकारियों के लिए जोइनिंग के एक माह में ही रिफ्रेशर कोर्स/इंडक्शन ट्रेनिंग करवाई जाए, उसी के बाद इनको पदस्थापित किया जावे ।
14. दंत चिकित्सकों का प्रोबेशन पीरियड एमबीबीएस चिकित्सकों की तरह एक वर्ष का किया जावे ।
15. चूंकि दंत चिकित्सकों की नियुक्ति शहरी क्षेत्र में ही होती है अतः उनके शहरी क्षेत्र में की गई सेवा अवधि के आधार पर ही उन्हें पीजी परीक्षा में 10-20-30 प्रतिशत बोनस दें ।
एक चिकित्सक से क्या अपेक्षा है ?
जिला स्तर पर प्रति दो माह में एक चिकित्सक मीटिंग हो जिसमें हर चिकित्सक उपस्थित होकर यूनियन की मजबूती में हिस्सेदारी प्रदान करे ।
जरूरत पड़ने पर जिला स्तर और राज्य स्तर पर होने वाले धरने प्रदर्शन मीटिंग आदि में पहुंचे ।
*चिकित्सकों का काफी नकारात्मक माहौल जनता में चल रहा है, ऐसे में सभी चिकित्सक पॉजिटिव माहौल बनावें और एक दूसरे पर कटाक्ष के बजाय एकजुटता वाली मिशाल कायम करें 🙂
Certificate Course – Post MBBS
One year Certificate Courses for in-Service Medical Officers (MBBS)
In reference to this Directorate Order No. Gazetted/DPC/C.Coursel 2014/972 dated 18-11-2014 and 1071 dated 06-01-2015, 267 selected in service doctors have been sent to Government Medical Colleges of the State on training for One year Certificate Course in, 10 Specialities.
As directed, applications are re-invited for the remaining vacant seats (List attached) with following relaxations in eligibility criteria:-
1. Minimum service rendered after regular selection is decreased from 5
years previously to 4 years after relaxation.
2. Minimum remaining service is decreased from 10 years previously to 8
years after relaxation.
3. Selected candidates shall furnish a bond of Rupees 25 Lacs for 8 years
mandatory Government Service after completion of course.
Post Graduate Medical Education Regulations 2000
(AMENDED UPTO 10th AUGUST 2016)
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SHORT TITLE AND COMMENCEMENT:
- These regulations may be called “The Postgraduate Medical Education Regulations 2000.
- They shall come into force on the date of their publication in the official Gazette.
- GENERAL CONDITIONS TO BE OBSERVED BY POSTGRADUATE TEACHING INSTITUTIONS:
- Postgraduate Medical Education in broad specialities shall be of three years duration in the case of degree course and two years in the case of Diploma course after MBBS and in the case of super specialities the duration shall be of three years after MD/MS with the exceptions wherever indicated.
- Postgraduate curriculum shall be competency based.
- Learning in postgraduate programme shall be essentially autonomous and self directed.
- A combination of both formative and summative assessment is vital for the successful completion of the PG programme.
- A modular approach to the course curriculum is essential for achieving a systematic exposure to the various sub-specialities concerned with a discipline.
- The training of PG students shall involve learning experience ‘derived from’ or ‘targeted to’ the needs of the community. It shall, therefore, be necessary to expose the students to community based activities.