The face of the pharma sector started changing, India will become the cheapest dispensary.
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी का पेट भरने में सक्षम भारत दुनिया का ’सबसे सस्ता दवाखाना’ (जेनेरिक) बन सकता है। विश्व को 20 प्रतिशत जेनेरिक दवाएं भारत मुहैया कराता है। दुनिया में सप्लाई होने वाली 60 प्रतिशत वैक्सीन मेड इन इंडिया है। अमरीका, ऑस्ट्रेलिया सहित 150 से अधिक देशों को हम दवा निर्यात करते हैं। हेपेटाइटिस बी और कैंसर की किफायती दवा हम बनाते हैं।दरअसल, देश की फार्मा इंडस्ट्री को आत्मनिर्भर बनाने के लिए शुरू की गई कोशिशों का असर अब दिखने लगा है। देश में अब भी दवाएं तो खूब बन रही हैं, मगर 70 से 90 प्रतिशत कच्चा माल चीन से मंगाया जाता है। चीन पर निर्भरता कम करने के लिए केंद्र सरकार ने 15 हजार करोड़ रुपए की प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआइ) स्कीम घोषित की है, जो 2029 तक चलेगी। इससे फार्मा सेक्टर की सूरत बदलने लगी है। दो साल पहले जो सपना था, वह अब हकीकत में तब्दील होने लगा है। औषधियों में इस्तेमाल होने वाले चिह्नित 53 एक्टिव फार्मास्युटिकल इन्ग्रेडिएंट (एपीआइ) में से 35 देश के 32 कारखानों में बनाए जा रहे हैं। अन्य फार्मा सामग्री का उत्पादन भी शुरू हो गया है।रेटिंग एजेंसी इन्फोमेरिक्स के अध्ययन के मुताबिक पीएलआइ योजना 3.34 लाख करोड़ रुपए के सालाना कारोबार वाले फार्मा सेक्टर के लिए गेमचेंजर साबित होगी। भारत ही नहीं अमरीका सहित कई पश्चिमी देशों के साथ चीन का तनाव है। कई बड़ी कंपनियां चीन से बाहर विकल्प खोज रही हैं। आधुनिक उत्पादन सुविधाओं के जरिए भारत उन्हें आकर्षित करना चाहता है। इसमें कुछ सफलता मिली है। ऊंचे लक्ष्य को हासिल करने के लिए बल्क ड्रग पार्क बनाए जा रहे हैं।
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