Identification of ‘inflammation’ factor new hope for glioblastoma patients
ग्लियोब्लास्टोमा सबसे आम मस्तिष्क कैंसर है। यह सबसे आक्रामक कैंसर में से एक है और सर्जरी, विकिरण चिकित्सा और कीमोथेरेपी आदि उपचार के बावजूद मरीज आम तौर पर उपचार प्रारंभ होने के समय से दो साल से भी कम समय तक जीवित रह पाते हैं। चार में से एक मरीज दो वर्ष से ज्यादा और पांच में से एक मरीज तीन वर्ष से ज्यादा समय तक जीवित रहते हैं।
इसलिए खोज उत्साहजनक
डॉ. मधुगिरी ने बताया कि दशकों से अवधारणा थी कि इंफ्लेमेशन ग्लियोब्लास्टोमा के विकास और प्रगति में महत्वपूर्ण खिलाड़ी नहीं है। अब निर्णायक सबूत हैं कि इंफ्लेमेशन जीवित रहने की अवधि के साथ जुड़ा एक महत्वपूर्ण मार्कर भी है। इंफ्लेमेशन के परिवर्तनीय कारक होने के कारण यह खोज उत्साहजनक है।
कई रिसेप्टर विशिष्ट एंटी-इंफ्लेमेटरी एजेंट उपलब्ध
तो क्या माना जा सकता है कि ग्लियोब्लास्टोमा के मरीजों को लंबे समय तक जीवित रखा जा सकता है सवाल के जवाब में डॉ. मधुगिरी ने कहा, ‘उत्तर जटिल है। हम निश्चित रूप से जानते हैं कि सैद्धांतिक रूप से इंफ्लेमेशन को कम करना फायदेमंद है। लेकिन, दुर्भाग्य से, स्टेरॉयड और कुछ एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग दवाओं के साथ प्रारंभिक नैदानिक परीक्षणों में आशाजनक परिणाम नहीं मिले हैं। लेकिन, यह अंत नहीं है। आज कई रिसेप्टर विशिष्ट एंटी-इंफ्लेमेटरी एजेंट उपलब्ध हैं।
अनियंत्रित हो जाए तो दोधारी तलवार
राष्ट्रीय मानसिक आरोग्य व स्नायु विज्ञान संस्थान (निम्हांस) के प्रोफेसर डॉ. वेंकटेश मधुगिरी के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय शोध समूह लगभग एक दशक से इस समस्या पर काम कर रहा है। कुछ परिवर्तनीय कारकों की पहचान में सफलता मिली है। इनमें से एक है कैंसर से जुड़ी सूजन (इंफ्लेमेशन) की मात्रा। इंफ्लेमेशन आवश्यक प्रक्रिया है, जो घाव भरने, रोगजनकों से लड़ने और सामान्य हाउस कीपिंग में मदद करती है। लेकिन, इंफ्लेमेशन एक दोधारी तलवार हो सकती है, खासकर जब यह अनियंत्रित हो जाए। इंफ्लेमेशन रक्त के प्रवाह को तेज कर कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने और फैलने में मदद करता है।
चिकित्सकों, शोधकर्ताओं और भविष्य के मरीजों के लिए ऐसे मरीज नई उम्मीद हैं। शोधकर्ता पता लगाने में जुट गए कि एक ही कैंसर के मरीज एक दूसरे से ज्यादा समय तक कैसे जीवित रह पाते हैं। कई दशकों के शोध के अनुसार निदान के समय उम्र, एलर्जी के लिए संवेदनशीलता, निदान से पहले लक्षणों की अवधि, ट्यूमर की आणविक प्रोफाइल (उदाहरण के लिए, आइडीएच उत्परिवर्तन स्थिति, एमजीएमटी जीन प्रमोटर मिथाइलेशन स्थिति, पी53 अभिव्यक्ति स्थिति आदि) दीर्घकालिक अस्तित्व को प्रभावित करते हैं। दुर्भाग्य से, ये सभी गैर-परिवर्तनीय कारक हैं और ट्यूमर को अच्छे और खराब में वर्गीकृत करने में उपयोगी हैं। खोज थी ऐसे परिवर्तनीय कारकों की, जो जीवित रहने की अवधि को बढ़ा सकें।
कम और ज्यादा समय तक जीवित रहने वाले मरीजों के तुलनात्मक अध्ययन में शोध दल ने पाया कि कम अवधि तक जीवित रहने वाले मरीजों में इंफ्लेमेशन ज्यादा था। न्यूट्रोफिल उच्च स्तर (एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिका, जो मुख्य रूप से इंफ्लेमेशन को प्रेरित करती है) पर पाए गए। एनीमिया (पुरानी इंफ्लेमेशन की स्थिति) की समस्या के साथ उच्च प्रणालीगत इंफ्लेमेटरी सूचकांक (एक समग्र मीट्रिक, जिसमें प्लेटलेट, न्यूट्रोफिल और लिम्फोसाइट काउंट शामिल हैं) की पुष्टि हुई। इंफ्लेमेशन को दबाने वाली कई दवाएं आज उपलब्ध हैं, जिनमें स्टेरॉयड से लेकर गैर-स्टेरायडल और नए इम्युनोमोड्यूलेटर शामिल हैं। एक और बहुत ही आशाजनक उपचार विकल्प इम्यूनोथेरेपी का उपयोग है, जिससे अन्य प्रकार के कैंसर में लाभ मिला है। ग्लियोब्लास्टोमा में इन एजेंटों का नैदानिक परीक्षण अभी शुरुआत है। ग्लियोब्लास्टोमा के लिए इम्यून मॉड्यूलेटर पर ट्रायल जल्द शुरू करेंगे। आशा है कि जल्द ही, हम संभावित रूप से ग्लियोब्लास्टोमा का इलाज कर सकेंगे और जीवित रहने की अवधि को बढ़ा सकेंगे। शोध दल ने ग्लियोब्लास्टोमा के सहिक उपचार की उम्मीद नहीं छोड़ी है।
⇓ Share post on Whatsapp & Facebook ⇓