बिना डिस्पेच नंबर अथवा एफआईआर नंबर नहीं स्वीकार करें तहरीर
प्रिय सरकारी चिकित्सक साथियों 🙂
चिकित्सकों को जिस क्षेत्र में सबसे ज्यादा सतर्क रहने की आवश्यकता है वह है मेडिको लीगल कार्य, क्यूंकि इसमें एक छोटी सी गलती या लापरवाही आप पर भारी पड़ सकती है !
तो कैसे बचा जाए ? हमेशा तथ्यों का गंभीरता से अवलोकन करें तथा मशविरे (अगर आवश्यक हो) के बाद ही अंतिम राय दें !
एक खतरनाक स्थिति के बारे में जानिए ताकि आप भविष्य में परेशानी में ना फसें –
अक्सर पुलिस आपके सामने एक तहरीर प्रस्तुत करती है जिसमें ना कोई डिस्पेच नम्बर होता है और ना ही कोई मुकदमा संख्या, समझदार और मंझे हुए साथी तो हमेशा से डिस्पेच नंबर के साथ ही तहरीर लेते हैं अथवा फोन करवाकर पुलिस वाले से थाने से डिस्पेच नंबर मंगवाते हैं लेकिन नए साथी जानकारी के अभाव में या खाकी के प्रभाव में आकर कई बार अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारते हैं और बिना किसी क्रमांक के ही एमएलसी रिपोर्ट जारी कर देते हैं, इसके लिए कई बार डॉक्टर जजों से डांट खाते हैं और माफ़ी मांगते हैं… क्यूँ ? किसके लिए ? अपनी जान जोखिम में ?
23 जनवरी 2018 के आदेश में (पूर्व में भी) निदेशक जन स्वास्थ्य ने स्पष्ट किया है की कोई भी तहरीर अगर “मुकदमा नंबर मय धारा” के प्रस्तुत की जाती है तो केवल उसी स्थिति मे एमएलसी रिपोर्ट जारी की जानी है और बनाई गयी रिपोर्ट्स की मासिक सुचना निदेशक को भिजवाई जानी है जिसमें “मुकदमा नंबर मय धारा” का उल्लेख अलग से करना है !
साथियों भविष्य में कोई भी साथी यह गलती ना दोहरावे.. बिना “मुकदमा नंबर मय धारा” के कोई भी एमएलसी रिपोर्ट ना जारी की जाए ! डिस्पेच नंबर अथवा (डिस्पेच नंबर + एफ़आइआर नंबर) होने पर ही कोई मेडिकोलीगल कार्य शुरू करें, बिना नम्बरी अथवा दस्ती लिखी तहरीर को स्वीकार ना करें !
वरना फंसने पर ही पता लगेगा की यह मामूली गलती नहीं बल्कि बहुत बड़ा झोल है !
सावधान रहें.. सुरक्षित रहें..
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