राखी पर एक बहिन का खुला पत्र अपने भाई के नाम
प्यारे भैया
आज राखी पर बड़ी दीदी ने शायद तुम्हारी कलाई पर राखी बांध दी होगी ! मेरे हिस्से वाली राखी शायद इस साल भी तुम्हें बांध नहीं पाउंगी । इस साल भी तुम्हारी कलाई पर नहीं बंधी एक राखी, तुम्हें मेरी याद दिलाएगी । उस कलाई पर नहीं बंध पा रही, तुम्हारी कलाई पर उस राखी के घेरे जाने वाली जगह सिर्फ मेरी है । मैं तुमसे नाराज हूँ । नाराज उस बात पर, जिसमें गलती तुम्हारी नहीं थी, पर तुम्हारी वजह से ही आज मैं वहां नहीं हूँ जहाँ मुझे होना था । मेरे वजूद और इन्सान के तौर पर स्वाभिमान को तोड़ने में तुम सबसे बड़े कारण थे मेरे भाई ।
हर बार टाल जाती हूँ पर आज तुम्हें बताना चाहती हूँ, अपना सच, जो कभी तुम्हें बताया नहीं, वो सच जो घिनौना है, कड़वा है पर है तो सच ही । सुनो, बड़ी दीदी के जन्म के समय घर में सबके चेहरे उदास तो थे पर उतने ग़मगीन नहीं थे जितना उस समय हुए, जब मेरे जन्म से पहले ही मम्मी पापा ये देखने के लिए की मैं लड़की हूँ या लड़का, किसी जगह मुझे लेकर गए और उन्हें पता लग गया की मम्मी के पेट में तुम नहीं मैं थी । लड़का नहीं एक लड़की । पापा गुस्सा हो गए, उन्होंने मम्मी को खूब भला बुरा कहा । उन्होंने मम्मी को क्यों डांटा मुझे तो समझ नहीं ही नहीं आया । अब मम्मी के पेट में लड़का आएगा या लड़की, ये मम्मी को थोड़े ही पता होगा और इसे गलती की तरह देखना भी भाई, कितनी बड़ी गलती थी । क्या हम लड़कियों का इस धरती पर आना अपराध है । क्या हम लड़कियां किसी की इच्छा से नहीं, गलती से धरती पर आते हैं । क्या हम वो नंबर हैं जो गलती से लग जाते हैं । रोंग नंबर । हमें गलती की तरह क्यों देखा और पाला जाता है ।शायद इसलिए हमारे साथ भेदभाव होता है क्योंकि गलती को तो, अच्छे खाने की, अच्छे कपड़े की, अच्छी शिक्षा की, स्वास्थ्य की और आजादी की जरुरत थोड़े हो होती है, गलतियाँ तो बीएस सजा भुगतने के लिए ही होती हैं । हाँ, लोग अब कुछ बदले हैं । समाज बदला है । किताबों में, अख़बारों में, फिल्मों में, और टीवी की बहस में लड़कियों को लेकर अच्छी बातें होने लगी हैं पर समाज का कड़वापन आज भी हरा है । पहले जो चीजें खुले तौर पर होती थी अब दबे पांव होती हैं, जैसा की मेरे साथ भी हुआ ।
मैंने देखा की पापा किसी को पैसे दे रहे थे और कुछ कह रहे थे । मुझे लगा शायद पापा यह बोले होंगे की मैं यहाँ मम्मी के पेट में अकेली हूँ, कैसी रह रही होउंगी । कोई दवाई या खाना मुझे दिया जायेगा जिससे मुझे अच्छा लगेगा या शायद मुझे जल्दी बाहर निकालने के लिए कहा होगा । वो मुझे गोदी में लेने और प्यार करने को उतावले हो रहे होंगें । मेरे मासूम दिल ने कहा पापा तो पापा ही होते हैं । बेटी अपनी मां से भी ज्यादा अपने पापा के करीब होती है । पापा की बेटी । और मैं भी अब साड़ी जिंदगी उनका सारा ध्यान रखूंगी । उनकी दवाई, उनका खाना, उनकी तबियत, सबका । मेरे पापा, प्यारे पापा । मैं यह सब सोच रही थी और पता नहीं क्या हुआ, मेरे पास बहुत हलचल सी होने लगी, मैं घबरा गयी । अचानक मेरा डीएम घुटने लगा, मुझे सांस आनी बंद हो गयी और फिर धीरे धीरे मेरा मांस का लोथड़ा शांत हो गया.. मैं सो गयी, ऐसी सोई की फिर कभी जागी ही नहीं । दुनिया में आने से पहले ही दुनिया से विदा कर दी गयी ।
समाज इसे हत्या नहीं सफाई कहता है । गंदगी का नाम सफाई । अजब गजब लोग और अजब गजब उनकी व्याख्याएं । मैं अब भी देख रही थी.. सब कुछ । मैं अब मरी हुई, खून से लथपथ चिपचिपी सी, गन्दी ट्रे में पड़ी हूँ । मम्मी पापा अब यहाँ नहीं थे । पता नहीं अब कहाँ थे । दिखाई नहीं दे रहे थे । कोई आदमी वहां साबुन से अपने हाथ धो रहा था । बार बार । पता नहीं ऐसा कौन सा खून लग गया था उनके हाथों पर जो इतना धोने पर भी नहीं निकल रहा था । अचानक दरवाजा खुला और एक आदमी आया, उसने मेरे शरीर को कपड़े में लपेटा और उठा लिया ।
सब्जी के थैले के जैसे उसके हाथों में थी मैं अब । जैसे सब्जी के थैले से थोड़ी सब्जी बाहर लटकती है वैसे ही कपड़े से बाहर मेरे छोटे छोटे पैर लटके हुए थे । नन्हे पैर । इन्हीं नन्हे पैरों को देवी के पैर मान कर पूजा होती है देश में । वो ही लटके नन्हें पैर किसी सहारे की तलाश में थे ।
मेरा शरीर उसके हाथों में बहुत दूर तक आ गया । यहाँ अँधेरा ही अँधेरा था । उस आदमी ने मेरे शरीर को झाड़ियों में फेंक दिया । मेरा छोटा सा शरीर मिट्टी से भरा, काँटों में था । छिल गया था, पर कोई नहीं था जो मेरा ध्यान रखे । थोड़ी देर में वहां कुत्तों का झुण्ड आ गया और मेरा शरीर एक कुत्ते के मुंह में था । उसके नुकीले दांतों के बीच । वो हर सड़क से निकल रहा था । बस्ती से, मोहल्लों से, कॉलोनियों से । सभ्य और पढ़े लिखे समाज का जनाजा अपने मुंह में दबाये । बरसात होने लगी । मुझे लगा भगवान रोये हैं मेरे लिए, उनका दिल दुख होगा । सोचा होगा मुझे इन्सान बनाकर भेजने क बजाय कुत्ता बनाकर ही भेज दिया होता तो शायद आज मेरे मांस के लोथड़े में जान बाकी होती ।
मुझे इस संसार में लाये भी मम्मी पापा और संसार से विदा भी किया मम्मी-पापा ने । मैं थैंक्स बोलूं या शिकायत करूँ, समझ नहीं आता । राखी पर कितने ही भाइयों को ये पता भी नहीं होगा की उसकी कलाई सूनी क्यों है ?
अगर वो इसकी और जांच पड़ताल करेंगे तो शायद वो अपने घर, प[परिवार और समाज की उस कड़वी हकीकत के बारे में जान पाएंगे जिसके कारण बहुत से भाइयों की कलाई पर या तो राखी कम है या फिर है ही नहीं । दुखद है पर हकीकत है की हालात नहीं सुधरे तो कलाई से राखियां और घर से लड़कियां कम होती रहेंगी ।
Audio concept – Dr. Jitendra Bagria, MBBS, DHM, PGDPHM
Audio voice – Dr. Mehvish Sharma